वर्धा, 21 अगस्त 2024 : महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने 21 अगस्त 2024 को दिल्ली में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान के साथ बैठक की और विश्वविद्यालय की योजनाओं पर चर्चा की। चर्चा में मुख्य रूप से रिद्धपुर (अमरावती) में संचालित विश्वविद्यालय के केंद्र ‘सर्वज्ञ चक्रधर स्वामी मराठी भाषा तथा तत्त्वज्ञान अध्ययन केंद्र’ और अन्य परियोजनाएँ सम्मिलित रहीं। बैठक में विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. आनंद पाटील और विश्वविद्यालय के रिद्धपुर केंद्र के लिए सहायता प्रदान कर उसे सुव्यवस्थित रूप देने के लिए प्रयासरत राजापेठ-अमरावती स्थित महानुभाव आश्रम के कुलाचार्य मोहन बाबा कारंजेकर भी उपस्थित थे।
प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने केंद्रीय मंत्री को विश्वविद्यालय की वर्तमान स्थिति से अवगत कराया। उन्होंने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की भाषाई अंतरानुशासनिक विशेषता और महत्त्व को उजागर करते हुए बताया कि हिंदी विश्वविद्यालय राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसरण में हिंदी भाषा और साहित्य के साथ-साथ भारतीय भाषाओं के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
माननीय केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने विश्वविद्यालय की भाषाई समावेशी दृष्टि की प्रशंसा करते हुए विश्वविद्यालय को समुचित सहयोग का आश्वासन दिया। विश्वविद्यालय को विकास पथ पर अग्रसर करने की दृष्टि से कुलपति प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने शिक्षा मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव श्री सुनील कुमार वर्णवाल और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सचिव प्रो. मनीष आर. जोशी से भी भेंट की और विश्वविद्यालय की वर्तमान स्थिति से अवगत कराया और विश्वविद्यालय के लिए यथाशीघ्र नियमित स्थायी कुलपति नियुक्त कराने हेतु निवेदन किया।
कुलपति प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने माननीय शिक्षा मंत्री, अतिरिक्त सचिव एवं सचिव, यूजीसी से मिलने के इस अवसर का उपयोग करते हुए विश्वविद्यालय की विभिन्न परियोजनाओं के लिए अतिरिक्त वित्तीय सहायता (निधि) की मांग की, जिससे कि विश्वविद्यालय अपनी योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू कर सके और हिंदी की शिक्षा एवं शोध को और अधिक सशक्त बना सके।
माननीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने विश्वविद्यालय के प्रस्तावों और सुझावों को गंभीरता से सुनने के बाद, उन्हें सकारात्मक समर्थन देने का आश्वासन दिया। यह बैठक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर सिद्ध होगी। ऐसी आशा की जा रही है कि इससे हिंदी शिक्षा एवं शोध के क्षेत्र में नई उन्नति और समृद्धि आएगी।