पारंपरिक भारतीय ज्ञान पद्धति का संवर्धन जरूरी – डॉ. भीमराय मेत्री

हिंदी विवि में ‘वन औषधि और देशज ज्ञान : स्‍थानीय से वैश्विक’ विषय पर दो दिवसीय राष्‍ट्रीय कार्यशाला का हुआ समापन

महाराष्ट्र /वर्धा, 16 फरवरी 2024: महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलपति डॉ. भीमराय मेत्री ने कहा कि समृद्ध भारतीय ज्ञान पद्धति को एक पी‍ढ़ी से दुसरी पीढ़ी तक हस्‍तांतरित करना चाहिए। यह पद्धति विकसित भारत के लिए परिवर्तनकारी साबित होगी। हमें वन औषधि और देशज ज्ञान के सवंर्धन के लिए मिलकर काम करने की आवश्‍यकता है।

डॉ. मेत्री विश्‍वविद्यालय के मानवविज्ञान विभाग एवं आदिवासी संशोधन एवं प्रशिक्षण संस्‍था, पुणे के संयुक्‍त तत्त्वावधान में ‘वन औषधि और देशज ज्ञान : स्‍थानीय से वैश्विक’ विषय पर दो दिवसीय (15 एवं 16) राष्‍ट्रीय कार्यशाला के उद्घाटन समारोह की अध्‍यक्षता करते हुए संबोधित कर रहे थे। 16 फरवरी को महादेवी वर्मा सभागार में कार्यशाला का उद्घाटन किया गया। इस अवसर पर अमरावती के आयुर्वेद विशेषज्ञ तथा सेवानिवृत्त वन अधिकारी डॉ. श्रीराम गिरी, सामाजिक वनीकरण विभाग, वर्धा के उप-वन संरक्षक सुहास बढ़ेकर, वर्धा जिला मानद वन्‍य जीव संरक्षक कौशल मिश्र ने संबोधित किया। डॉ श्रीराम गिरी ने विविध प्रकार की देशज औषधि, वनस्‍पति के उपयोग और उसके महत्‍व को समझाया। उन्‍होंने कहा कि औषधि वनस्‍पति देश के लिए अमूल्‍य धरोहर है। यह मानव को विभिन्‍न प्रकार की बिमारियों से मुक्ति दिलाती है। उप-वन संरक्षक सुहास बढे़कर ने दैनंदिन जीवन में वन औषधि के उपयोग की चर्चा करते हुए कहा कि अपने आस-पास और जंगलों में उपलब्‍ध औषधि पौधों का संवर्धन आवश्‍यक है। मानद वन्‍य जीव संरक्षक कौशल मिश्र ने कहा कि चरक संहिता में आयुर्वेद में वन औषधि के महत्‍व को बताया गया है। हाल के दिनों में वातावरणीय बदलाव के कारण वन औषधियां नष्‍ट हो र‍ही हैं। भारत की वनसंपदा और मसालों का विदेश में निर्यात किया जाता रहा है। उन्‍होंने वर्धा जिले की वनसंपदा, लोकजीवन और औषधि पौधों की जानकारी दी। स्‍वागत भाषण मानवविज्ञान विभाग के अध्‍यक्ष प्रो. फरहद मलिक ने किया। उन्‍होंने स्‍वास्‍थ्‍य नीति 2017 का उल्‍लेख करते हुए कहा कि इस नीति में वैज्ञानिक चिकित्‍सा पद्धति के साथ-साथ पारंपरिक उपचार पद्धति को उपयोग में लाने पर बल दिया गया है। उन्‍होंने विश्‍वविद्यालय में औषधि वाटिका निर्मित करने की भी चर्चा की। कार्यक्रम का संचालन मानवविज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ निशीथ राय ने किया तथा सहायक प्रोफेसर डॉ वीरेंद्र प्रताप सिंह ने आभार माना। दो दिवसीय कार्यशाला के अंतर्गत 15 फरवरी को वन विभाग के सहयोग से आर्वी तहसील के बोथली (पांजरा) में आयुर्वेदिक वनस्‍पति का उपयोग एवं उपचार पर चर्चासत्र आयोजित किया गया।कार्यशाला के अंतर्गत तकनीकी सत्र अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. कृष्‍ण कुमार सिंह की अध्‍यक्षता में आयोजित किया गया जिसमें नागभिड की आयुर्वेद चिकित्‍सक डॉ रत्नप्रभा रुडे, जिजामाता महाविद्यालय, वणी के डॉ. अनिल कोरपेनवार, परतवाडा के आयुर्वेद चिकित्‍सक डॉ. देवेंद्र श्रीराम गिरी, नेशनल बोटेनिकल रिसर्च इंस्टिटयूट, लखनऊ की वैज्ञानिक डॉ. प्रियंका अग्निहोत्री, आईसीएफआरई छिदवाड़ा की डॉ. विशाखा कुंभारे, केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय दिल्ली के सहायक वन महानिदेशक डॉ. सुनील शर्मा, महात्‍मा गांधी आयुर्वेदिक महाविद्यालय, सावंगी के द्रव्‍यगुण विभाग के अध्‍यक्ष डॉ. दत्‍तात्रय सरवदे ने संबोधित किया। डॉ. सुनील शर्मा ने कहा कि भारत जैव विविधता का केंद्र है। सरकार ने वन और वन्‍य जीव को लेकर नीति तैयार की है जिसमें वन औषधि, जैव विविधता और वन्‍य प्राणियों के संरक्षण के लिए कानून बनाए गये हैं। लोगों का सहयोग और सामूहिक जिम्‍मेदारी से हमें वनों का संवर्धन और संरक्षण करना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन मानवविज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ वीरेंद्र प्रताप सिंह ने किया। इस अवसर पर अतिथियों को मानपत्र एवं प्रतिभागिताओं को प्रमाणपत्र प्रदान किए गये। डॉ. रामानुज अस्‍थाना, डॉ. बालाजी चिरडे, डॉ. जनार्दन कुमार तिवारी, डॉ. विपिन कुमार पाण्‍डेय, डॉ. एच.ए. हुनगुंद, डॉ. राजेश लेहकपुरे, डॉ. उमेश कुमार सिंह, डॉ. संदीप वर्मा, डॉ जगदीश नारायण तिवारी,डॉ. अर्चना भालकर, डॉ. रूपेश कुमार सिंह, डॉ. रणंजय कुमार सिंह, डॉ. कोमलकुमार परदेशी, डॉ. स्‍नेहा विधाते, रामरावजी ब. चौधरी, डॉ. पारूल नांदगावकर, डॉ. अक्षय पारगांवकर, बी.एस. मिरगे, शिवाजी सावंत, प्रफुल्‍ल जिवतोडे, रामरावजी चौधरी, ताम्रध्वज बोरकर, हेमंत दुबे, मिथिलेश राय, सौरभ पाण्‍डेय सहित मानवविज्ञान विभाग तथा महात्मा गांधी आयुर्वेदिक महाविद्यालय, सावंगी के शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

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